15 एन, नेली सेनगुप्ता सरणी, कोलकाता-700087
(जूट: बेहतर खेती और उन्नत रेटिंग का अभ्यास)
राष्ट्रीय पटसन बोर्ड द्वारा केंद्रीय पटसन एवं समवर्गीय रेशा अनुसंधान संस्थान और भारतीय पटसन निगम लि. के सहयोग से चालू की गई कार्यक्रम
परियोजना जूट-आईकेयर की पृष्ठभूमि और औचित्य:
जूट एक विशाल घरेलू बाजार और निर्यात क्षमता के साथ एक पर्यावरण हितैषी, बायोडिग्रेडेबल और नवीकरणीय प्राकृतिक फाइबर के रूप में एक अद्वितीय स्थान रखता है। लगभग 7.32 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए मेस्टा सहित कच्चे जूट का उत्पादन लगभग 13.50 लाख टन है जिसमें करीब 4 मिलियन कृषक परिवार शामिल हैं।
जूट कृषकों की पारंपरिक खेती के अभ्यास से ज्यादातर निम्न श्रेणी के फाइबर निकलते हैं क्योंकि गैर-वैज्ञानिक खेती के अभ्यास से पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है और उपयुक्त रेटिंग की सुविधा की उपलब्धता नहीं रहने और पानी के अभाव के कारण उत्तम रेटिंग नहीं होती है। उत्पादन बढ़ाने और गुणवत्ता फाइबर में सुधार के लिए तीन क्षेत्रों अर्थात् प्रमाणित जूट बीज बोने की उपलब्धता, निराई, फाइबर निकालने (रेटिंग) में गुणवत्ता के इनपुट के साथ आधुनिक कृषि अभ्यास आवश्यक हैं। यह स्थापित किया गया है कि ब्रॉडकास्टिंग के बजाय सीड ड्रिल का उपयोग करते हुए जूट की बुवाई लाइन से करने पर 10-15% तक उपज बढ़ जाती है, निराई और गुड़ाई के लिए कम श्रम की आवश्यकता होती है, तेजी से विकास के लिए फसल का बेहतर प्रबंधन और अन्य पोस्ट-बुवाई कार्यों की सुविधा होती है। हाथ से निराई करने के बजाय व्हील होइंग/नेल वीडर द्वारा निराई की लागत को कम करते हुए जूट की खेती से लाभप्रदता बढ़ाने में जूट में वीड प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो कुल खेती के लागत का लगभग 35% है।
फाइबर गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों जिसमें प्रमाणित जूट बीज एवं रेटिंग का उपयोग किया जाता है, में से उन कारकों की पहचान की गई है जो गुणवत्ता फाइबर को प्रभावित करने में सबसे महत्वपूर्ण हैं।
बेहतर कीमत की वसूली और मूल्य संवर्धन के लिए उत्पादकता और फाइबर की गुणवत्ता में सुधार करते हुए जूट उगाही की लागत को कम करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय पटसन बोर्ड (एनजेबी) द्वारा केंद्रीय पटसन एवं समवर्गीय रेशा अनुसंधान संस्थान (क्राइजाफ) और भारतीय पटसन निगम लि. (भापनि) के सहयोग से जूट – आईकेयर कार्यक्रम चालू की गई जिसका उद्देश्य कृषक हितैषी तरीके से जूट की खेती में मशीनीकरण करना है और जूट कृषकों के लिए बेहतर आय हेतु माइक्रोबियल कंसोर्टियम का उपयोग करते हुए त्वरित रेटिंग करना है।
उद्देश्य:
परियोजना का उद्देश्य छोटे और सीमांत जूट कृषकों को खेती करने से पहले और उसके बाद पर्याप्त सहयोग करना है ताकि वे अच्छी गुणवत्ता वाले जूट उगा सकें और अपने उपज का अधिक मूल्य प्राप्त कर सकें। इस परियोजना की निरंतरता देश में नवीनतम प्रौद्योगिकियों के बारे में उत्पादकों को जागरूक भी करेगी।
वैज्ञानिक कृषि तकनीकों और प्रथाओं के उपयोग को संस्थागत बनाने के लिए निम्नलिखित इनपुट प्रदान किए जाएंगे जिसे जूट कृषकों को प्रदान किए जाएंगे:
अवयव:
ए) सीड ड्रिल का उपयोग करते हुए लाइन बुवाई।
बी) बेहतर परिणाम के लिए प्रमाणित जूट बीज का उपयोग।
सी) साइकिल वीडर का उपयोग करते हुए निराई।
डी) खेती और अन्य अभ्यासों की समय पर जानकारी देने के लिए एसएमएस के माध्यम से कृषकों के साथ व्यक्तिगत संपर्क।
ई) लागत में कमी के लिए जूट की वैज्ञानिक ढंग से खेती करने के लिए प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन।
एफ) फाइबर की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए पारंपरिक रेटिंग में क्राइजाफ सोना का इस्तेमाल।
परियोजना का लक्ष्य:
परियोजना के अंत में प्राप्त करने के लिए प्रस्तावित परियोजना के लक्ष्य हैं:
ए) वर्तमान उत्पादन से कम से कम 5% जूट के उत्पादन में सुधार
बी) जूट के ग्रेड में कम से कम एक ग्रेड का सुधार।
सी) श्रम की बचत सहित खेती में प्रति हेक्टेयर 8000/- रु. से 10,000/- रु. तक की लागत में कमी।
डी) उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार के कारण कृषक के आय में प्रति हेक्टेयर लगभग 7000/- रु. की सांकेतिक वृद्धि।
कार्य-कलाप:
ए) जूट कृषकों का चयन: जूट कृषकों एवं उनके खेती के स्थानों का चयन।
बी) कृषकों को प्रशिक्षण: बीज वितरण से पहले कृषकों को प्रशिक्षण (प्रशिक्षण बीज वितरण से 15-20 दिन पहले शुरू होना चाहिए) ताकि उन्हें बेहतर कृषि पद्धतियों के बारे में बताया जा सके।
सी) भूमि की तैयारी: बीज बोने के लिए भूमि को सीढ़ीनुमा और समतल बनाते हुए चयनित क्षेत्रों में भूमि की तैयारी मैन्युअल रूप से या ट्रैक्टर द्वारा गहरी जुताई करना।
डी) एसएमएस: एनजेबी कृषकों को शिक्षित करने के लिए प्रमाणित बीज, भूमि की तैयारी, बुवाई, डि-वीडिंग, पौधों की सुरक्षा, रेटिंग आदि से प्रारंभ करते हुए सभी पंजीकृत कृषकों को एसएमएस भेजेगा। क्राइजाफ एसएमएस के लिए डेटा तैयार करने में सहायता करेगा। आईवीआरएस भी कार्यान्वित किया जा सकता है।
ई) प्रमाणित जूट बीज का वितरण: 100% प्रमाणित जूट बीज (JRO 524/204) कृषकों को बाजार मूल्य के 50% पर वितरित किया जाएगा। इससे पौधों की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित होगी।
एफ) बुवाई के उपकरणों का वितरण:
i) मल्टी रो सीड ड्रिल: मल्टी रो सीड ड्रिल द्वारा लाइन बुवाई सुधार किया हुआ अभ्यास है जिसमें बीज की आवश्यकता आधी या उससे भी कम होती है जो बुवाई वाली जूट बीज के पारंपरिक प्रसारण अभ्यास के लिए आवश्यक है। पंक्ति बुवाई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 सेंटीमीटर रखी जाती है जबकि पौधे से पौधे की दूरी 5-7 सेंटीमीटर होती है। यह बुवाई में पारंपरिक प्रसारण के लिए उसकी तुलना में पतला और निराई करने में श्रम लागत को कम करता है और फाइबर की बेहतर उपज देता है।
ii) साइकिल वीडर: बरसात के मौसम में जूट की खेती में भारी जंगली घास का विकास होता है। मैनुअल विडिंग और थिनिंग पर परिचालन लागत लगभग 35% है। अंतर-पंक्तियों में साइकिल वीडर से जूट में वीड प्रबंधन जंगली घास को नियंत्रित करता है, मिट्टी की नमी का संरक्षण करता है, विशेष रूप से भारी बनावटी मिट्टी में मिट्टी के पानी को बढ़ाता है और श्रम लागत को काफी कम कर देता है।
जूट आईकेयर-II परियोजना-2015 एवं उसके आगे: अनुभव की सफलता और कृषकों की भारी प्रतिक्रिया के आधार पर निर्णय लिया गया कि क्षेत्र के कवरेज का विस्तार किया जाए और आगे 2016 की योजना के लिए विभिनन इनपुटों के कार्यान्वयन को तीव्र किया जाए।
विगत पाँच वर्षों की प्रत्यक्ष प्रगति नीचे दी गई है:
क्र.सं. | विवरण | आईकेयर-I (2015-16) | आईकेयर-II (2016-17) | आईकेयर-III (2017-18) | आईकेयर-IV (2018-19) | आईकेयर-V (2019-20) प्रस्तावित |
1 | कवर किये गये जूट उगाने वाले ब्लॉक/राज्य की सं. | प.बं. एवं असम के अंतर्गत 4 ब्लॉक | प.बं., बिहार, असम, ओडिशा, आंध्रप्रदेश एवं मेघालय के अंतर्गत 14 ब्लॉक | प.बं., बिहार, असम, ओडिशा, आंध्रप्रदेश एवं मेघालय के अंतर्गत 30 ब्लॉक | प.बं., बिहार, असम, ओडिशा, आंध्रप्रदेश एवं मेघालय के अंतर्गत 69 ब्लॉक | प.बं., बिहार, असम, ओडिशा, आंध्रप्रदेश एवं मेघालय के अंतर्गत 72 ब्लॉक |
2 | कवर किये गये जमीन(हे.) | 12331 | 26264 | 70628 | 98897 | 100000 |
3 | कवर किये गये जमीन(हे.) | 21548 | 41616 | 102372 | 193070 | 200000 |
4 | प्रदान की गई प्रमाणित बीज (मैट्रिक टन में) | 64मैट्रिक टन | 160मैट्रिक टन | 500मैट्रिक टन | 755 नई किस्म जेआरओ-204 589 मैट्रिक टन एवं जेबीओ2003एच 166 मैट्रिक टन एनएससी द्वारा प्रमाणित बीज | 535मैट्रिक टन |
5 | सीड ड्रिल मशीन | 350 Nos. | 350 (पुराना) + नया 350 = 700 | 700 (पुराना) + नया 500 = 1200 | 1200 (पुराना) + नया 750 = 1950 | Old = 1950 नया = 600 कुल = 2550 |
6 | नैल वीडर मशीन | 500 Nos. | 500 (पुराना) + 200 नया = 700 | 700 (पुराना) + 500 नया = 1200 | 1200 (पुराना) + नया 750 =1950 | Old = 1950 नया = 900 कुल = 2850 |
7 | क्राइजाफ सोना (मैट्रिक टन) | 83 | 273 | 206 | 610 | 750 मैट्रिक टन |
8 | प्रत्येक पंजीकृत कषक को भेजे गये एसएमएस | 46 सेट एसएमएस | 52 सेट एसएमएस | 55 सेट एसएमएस | 60 सेट एसएमएस | 75 सेट एसएमएस |
9 | बोवाई एवं रेटिंग का प्रदर्शन | 50 | 132 | 200 | 400 | 400 |
वैज्ञानिक रूप से अभ्यास करने के लिए परियोजना के कार्यान्वयन में किए गए ठोस प्रयासों के कारण निम्नलिखित फीडबैक (प्रतिक्रिया) प्राप्त हुई है –
i. जूट फाइबर की गुणवत्ता सामान्य रेटिंग से बेहतर पाई जाती है
ii. लगभग 10% अधिक फाइबर की रिकवरी के साथ रेटिंग समय 18-22 दिनों से घटकर 12-14 दिन हो गया।
iii. प्रमाणित जूट बीज का उपयोग, लाइन से बुवाई और क्राइजाफ सोना द्वारा रेटिंग करने के कारण उपज 23/24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से 29/30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़ होती है।